संतोकी
बात करें तो यह कबुल करना चाहिये कि पोथी पंडितो के उपदेशसे ज्यादा संतोके उपदेश
चाहे कितने भी अलग और उर्ध्वगामी रहे होंगे तो भी यह दुःखदायी रुप से बेअसर रहे
हैं। दो कारणोंसे यह बेअसर रहे हैं। प्रथम तो यह कि किसी भी संतने कभी जातिप्रथा
पर प्रहार नहीं किया। बल्कि वे तो जाति व्यवस्थाके चुस्त हिमायती थे।
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