Monday, December 26, 2011

७ अप्रैल : व्यक्ति विशेष


गुजराती साहित्य परिषद सभा को सयाजीराव का संबोधन 1912


संतोकी बात करें तो यह कबुल करना चाहिये कि पोथी पंडितो के उपदेशसे ज्यादा संतोके उपदेश चाहे कितने भी अलग और उर्ध्वगामी रहे होंगे तो भी यह दुःखदायी रुप से बेअसर रहे हैं। दो कारणोंसे यह बेअसर रहे हैं। प्रथम तो यह कि किसी भी संतने कभी जातिप्रथा पर प्रहार नहीं किया। बल्कि वे तो जाति व्यवस्थाके चुस्त हिमायती थे।

No comments:

Post a Comment