गांधीवाद को काल्पनिक वर्गभेदसे संतोष नहीं है।
गांधीवाद वर्गोंकी रचना करनेका आग्रह रखता है, समाजकी वर्ग रचनाका आदर करता है,
इतना ही नहीं परन्तु आमदनीके भेद को भी पवित्र मानता है और परिणामस्वरुप धनिक और
गरीब, उच्च और नीच, मालिक तथा कामगारोंको समाजतंत्रके स्थायी अंग मानता है।
सामाजिक परिणाम की द्रष्टि से इससे ज्यादा खतरनाक दूसरा कुछ हो नहीं सकता।
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