चीरनेर केसमें कोंग्रेसी कार्यकर्ताओंका केस बाबासाहब लडे 1930
मुंबईमें सवर्ण हिन्दु नेताओंकी सभामें अस्पृश्यता नाबूदीके लिये
संकल्प 1932
नौकरी
करारका भंग यह कोई अपराध नहीं है. यह सिर्फ एक दीवानी कृत्य है. भारतीय विधान
परिषदने नौकरी करारके भंगको अपराध नहीं माना है, क्योंकि नौकरी करनेके लिये बाध्य
करना यानि उसे गुलाम बनाना (1938)
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