गांधीवादी अर्थतंत्र बिल्कुल निराशाजनक है,
मिथ्या है। यंत्र और आधुनिक संस्कृतिने अनेक दूषण जन्म दिया है इस हकीकत को
स्वीकार कर सकते है, परन्तु यह दूषण उसके विरुद्ध की दलील नहीं है। क्योंकि, यह
दूषण यंत्र या फिर आधुनिक संस्कृति के कारण पैदा नहीं हुए हैं। समाज की गलत व्यवस्थाने निजी संपत्ति
और निजी लाभ के पीछे लगी स्पर्धा को
पवित्र माना है जिससे गलत व्यवस्था के कारण इनका जन्म हुआ है।
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