अखिल
भारतीय अस्पृश्य विधार्थी परिषद को डॉ. अम्बेडकरका संदेश 1954
"श्रेष्ठ"
जर्मन फ्रेंचों के लिये "श्रेष्ठ" हो सकते हैं? "श्रेष्ठ"
तुर्क ग्रीक के लिये श्रेष्ठ हो सकते हैं? क्या "श्रेष्ठ" पोलेन्डवासीओंको
यहुदी "श्रेष्ठ" मानेंगे? इन प्रश्नों के सही उत्तरके लिये शायद ही कोई संदेह
हो सकता है। मनुष्य कोई यंत्र नहीं है। उसके मनमें कुछ लोगोंके लिये सहानुभूति तो,
कुछ लोगों के लिये द्वेष होता है। इन बातो को ध्यानमें रखकर, शासक वर्गके
"श्रेष्ठ" व्यक्ति गुलामवर्ग की दृष्टि में "कनिष्ट" साबित हो
सकता है।
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