पुनामें सार्वजिनक सभा 1946
मुक्त
समाजके हर व्यक्तिको व्यापारके ज्वार और भाटा, तेजी और मंदी के उतार-चढावसे गुजरना
पडता है। परन्तु, गुलाम को इसका कोई असर नहीं होता। यह उसके मालिकको असर कर सकता
है, परन्तु गुलाम उससे आजाद रहता है। उसे रोटी मिलती रहती है, शायद एक ही रोटी,
परन्तु रोटी, चाहे मंदी हो या तेजी।
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