सन २००६में बीहेवीयरल सायंस सेंटरकी प्रेरणासे बनासकांठा दलित संगठनकी ओरसे भीम डायरी प्रकाशित हुई थी. बाबासाहबके विचार मास अनुसार बारह विभागोंमें पेश किये थे. गुजरातके कोने कोनेसे उसे सराहा गया था.युवा अपने स्थानोंपर ब्लेकबोर्ड पर बबासाहबके विचार लिखते थे.इस भीमवाणी ब्लोगमें वही चिंतन रखा है .
साठ सालसे बाबासाहबके नामसे लोग अपने विचार रख देते
हैं. ‘शिक्षित हों,संगठित हों,संघर्ष करें’ के उपरांत और कोई सूत्र सुननेमें नहीं
आता. चौदह अप्रैलके दिन बाबासाहबको पुष्पांजलि
अर्पण करके जयघोष करनेकी और सन्तुष्ट हो जानेकी परम्परा रही है. गांधीवाद,
हिन्दुवाद, कोंग्रेस,ब्राह्मणवाद – इन सबके बारेमें क्वचित ही बात हुई है.
वह अंग्रेज पत्रकार रात बारह बजे बाबासाहबके घर गया
तब वे जग रहे थे . उसने पूछा-‘अरे, बाबासाहब, अब भी आप क्यों जग रहे है?”बाबासाहबने
उत्तर दिया था – ‘मेरा समाज सोया हुआ है, इसलिए मैं जग रहा हूँ .‘ ऐसी कहानियाँ
गढ़नेवाले लोग कोंग्रेस और भा.ज.प.में शूस गए हैं, यही उनका अम्बेडकरवाद है.
बाबासाहब बहुत अच्छी वायलिन बजाते
थे.कविता भी लिखते थे. (चूंकि सामाजिक न्याय विभागके अवार्डके लिए छटपटाते
नहीं थे.) कोंग्रेस मन्त्रिमंडलमें थे लेकिन त्यागपत्र देनेसे हिचकिचाए नहीं थे.(केवल
भाषण देनेमें ही काबिल न थे ) बाबासाहब बहुत ऋजु, कोमल प्रकृतिके
स्वामी थे. महापुरुष ऐसे ही होते है. वज्रादपि
कठोराणि मृदुनिकुसुमादपि. वज्र जैसे कठोर और फूल जैसे कोमल. किन्तु वे हमारे लिये महत्वके हैं
क्योंकि उनके विचार और उनकी प्रासंगिकता आज भी महत्त्व रखते हैं और वह भी अकेलादुकेला विचार
नहीं परन्तु एड़ीसे चोटीतक ,सम्पूर्ण विचार.
कुछ लोगोंको सिर्फ बौद्ध आंबेडकर ही प्रिय हैं तो कुछ्को
आरक्षण दिलानेवाले बाबासाहब ही , कुछ्को कांग्रेसविरोधी बाबासाहब पसंद हैं- सिर्फ
भा.ज.प.में चले जानेकी दलीलके तौर पर.अम्बेडकरी विचारधाराका मनपसंद उपयोग तथा
अर्थघटन करनेसे पहले अगर कोई ‘भीमवाणी’का चिंतन पढेगा और सोचेगा तो हमारा श्रम सार्थक
होगा.
‘भीमवाणी’के प्रेरणास्रोत आदरणीय विद्वान सखा डा.गणपत
वणकरको हार्दिक धन्यवाद.
राजु सोलंकी
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