एस.
के. बोले का मुंबईमें सार्वजनिक सम्मान 1932
मेरे
मंतव्य अनुसार बिनसांप्रदायिक बाह्मणों और सनातनी
बाह्मणोंके बीच किसी भी तरहका फर्क करना निरर्थक है। दोनों एकदूजेके स्वजन हैं। एक
ही शरीर के दो कंधे हैं और एकके अस्तित्व के लिये दूसरा लडने ही वाला है।
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