डॉ. आंबेडकर - गांधी मुलाकात, मणीभुवन, मुंबई 1934
एक
अस्पृश्य से ऐसा कहना कि "तु मुक्त है, तु नागरिक है, तेरे पास नागरिकके सभी
अधिकार है" और फंदे को ऐसा मजबूत करना कि यह आर्दश एक घातकी छल है ऐसा एहसास
करने का कोई मौका उसके पास बचे ही नहीं। अस्पृश्य को उसकी गुलामीके बारेमें जागरूक
करनेके बिना गुलाम बनाने की यह तकनीक है।
यह अस्पृश्यता है, फिर भी गुलामी है। परोक्ष है, फिर भी वास्तविक है। यह सह्य है,
क्योंकि यह बेहोशी है। दोनों व्यवस्थामें
अस्पृश्यता बेशक बदतर है।
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