हैदराबाद
के उस्मानिया विश्व विधालयने बाबासाहबको डॉक्टर ऑफ लिटरेचरकी पदवी अर्पण की 1953
पुराने
हिन्दु कानूनके अंतर्गत ब्राह्मण धर्मगुरुके रुपमें लाभका उपभोग करता था। अगर वह
खून करने जैसा गुनाह करे तो भी उसे फांसी नहीं दी जाती थी और इस्ट इंडिया कंपनीने
1817 तक ब्राह्मणोंको इस विशेषाधिकार भोगने दिया।
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