Wednesday, December 28, 2011

१८ जुलाई : धर्मांतर




ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासीस परिषद। नागपुर 1942

एक हिन्दुके लिये हिन्दु धर्ममें यकीन करना इतना महत्वपूर्ण नहीं है। यह यकीन तो उसकी गुरुताग्रंथिकी वह भावनाको ऐसी सभानता से सींचता है कि उसके नीचे लाखों अस्पृश्य है। मगर एक अस्पृश्य ऐसा कहे कि वह खुद भी हिन्दु धर्ममें मानता है तो उसका क्या अर्थ होगा? उसका अर्थ यह होगा कि वह स्वीकार करता है कि वह एक अस्पृश्य है और दैवी व्यवस्थाकी वजहसे अस्पृश्य है, क्योंकि हिन्दु धर्म दैवी व्यवस्था है।


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