Friday, December 30, 2011

३१ दिसम्बर : गांधीवाद




गुजरात में आरक्षित बैठकोंको नाबूद करनेके लिये राइटिस्ट अंतिमवादी आंदोलनकारीओंका सरकारको आवेदन पत्र, हिन्दु फासीवादकी प्रयोगशालाका भूमिपूजन 1981

गांधीवादने जो कुछ भी किया है, वह हिन्दु धर्म और उसके सिद्धांतोको तात्विक रुपमें सही ठहराने के लिए किया है। हिन्दु धर्मको ढंक नहीं सकते, इस अर्थमें कि यह सिर्फ नियमों के एक ढांचा

जैसा है, जिसके चेहरे पर एक घातकी और जाहिल व्यवस्था की छाप उभरी है। गांधीवाद उसे एक ऐसा तत्वचिंतन देता है, जो उसकी सतहको नरम बनाता है और उसे सौजन्य और आदर देता है और उसे इस बदलता है। इतना ही नहीं परन्तु यह आकर्षक लगे इस तरह इसे सजाता भी है

३० दिसम्बर : गांधीवाद



पंढरपुरमें सोलापुर जिल्ला दलित परिषद 1937

मुंबईमें आठवीं राष्ट्रीय सामाजिक परिषदमें सयाजीरावका उदघाटकीय भाषण 1904

२९ दिसम्बर : गांधीवाद




रुढिचुस्त हिन्दु धर्म में भी न मिले ऐसी कौन सी चीज गांधीवादमें है? हिन्दु धर्ममें ज्ञातिप्रथा है, गांधीवादमें ज्ञातिप्रथा है। हिन्दु धर्म आनुवंशिक व्यवसायमें मानता है इस तरह गांधीवाद भी मानता है। हिन्दु धर्म इस दुनिया में मानवकी स्थिति के बारेमें पूर्व नियतिरुप कर्मके सिद्धांतो को पुष्टि देता है, गांधीवाद भी उसे पुष्टि देता है। हिन्दु धर्मशास्त्रकी सत्ताका स्वीकार करता है, गांधीवाद भी स्वीकार करता है। हिन्दु धर्म ईश्वरके अवतारों को मानता है और गांधीवाद भी मानता है। हिन्दु धर्म मूर्तिपूजामें मानता है। उसी प्रकार गांधीवाद भी मानता है।














२८ दिसम्बर : गांधीवाद



दूसरी गोलमेजी परिषदसे वापस आते गांधीजीके खिलाफ मुंबई बंदरगाह पर 8000 अस्पृश्य स्त्री- पुरुषोने काले झण्डे दिखाये 1931
‘पाकिस्तान अथवा भारतका विभाजन’ ग्रंथ 1940


गांधीवादके अनुसार अस्पृश्य कानून पढ सकते है, डाक्टरी सीख सकते है, इजनेरी अथवा उन्हें जो भी पसंद  हो ऐसी विद्याकी शिक्षा ले  सकते हैं । यह अच्छा है, परन्तु अपने ज्ञान और विधा का उपयोग करने के लिये क्या अस्पृश्य स्वतंत्र होंगे?

२७ दिसम्बर : गांधीवाद



बेलगाम म्युनिसिपालिटी द्वारा सत्कार 1939


गरीबी किसी दूसरे के लिये नहीं परन्तु शूद्रोंके लिये अच्छी है, ऐसा उपदेश देना, झाडुवाला का काम किसी दूसरे के लिये नहीं परन्तु अस्पृश्यो के लिये अच्छा है ऐसा उपदेश देना और इस त्रासदायक फ़र्ज को जीवनका स्वैच्छिक हेतु मनवाकर उसका स्वीकार करवाना और ऐसा करनेमें उनकी निष्फलता को याचना करना, यह सब यह लाचार वर्ग का अपमान नहीं है? उनका  क्रूर मज़ाक नहीं है? और ये सब निर्भीक  और स्थिर बुद्धि से दूसरा कोई नहीं परन्तु श्री गांधी ही कर सकते है।

२६ दिसम्बर : गांधीवाद




अगर कोई वाद ऐसा है कि जिसने लोगों को झूठी सुरक्षामें सुला देने के लिये धर्मका अफ़ीम की तरह उपयोग किया हो तो वह गांधीवाद है। शेक्सपियरका अनुसरण करके कह सकते है, "बडी बडी बातें, करामतें, तेरा नाम गांधीवाद"

२५ दिसम्बर : गांधीवाद












सवर्णो ने चवदार तालाब का शुद्धिकरण किया, सरकार ने तालाब का पानी पीने की दलितो को मना फ़रमाई, बाबासाहब ने पुनः क्रांति की रणभेरी बजायी।


शुद्र अगर संपत्ति रखते तो बदलेमें हिन्दुओंका पवित्र कानून उन्हें  सजा देता  था। गरीबी लादनेवाला यह एक ऐसा कानून जिसकी मिसाल दुनियामें कहीं नहीं मिलेगी। गांधीवादने क्या किया है? उसने वह पाबन्दी हटानेके बजाय संपत्तिका त्याग करने की शुद्रकी नैतिक हिंमतको  आशीर्वाद दिया। श्री गांधीके खुद के शब्द उद्धरण के योग्य है। वे कहते है, "अपने धार्मिक कर्तव्यके रुप में जो शुद्र सिर्फ सेवा करते है और जिनके पास कभी निजी संपत्ति  नहीं होगी और जिसे सचमुच कुछ भी संपत्ति रखने की आकांक्षा तक नहीं है ऐसे शुद्र हजारों  प्रणिपात के योग्य है। स्वंय देवता  भी उनके उपर पुष्पवर्षा करेंगे।

२४ दिसम्बर : गांधीवाद


कोल्हापुर में राजाराम कॉलेजका वार्षिक छात्र  स्नेहमिलन 1952
पेरियार रामास्वामी स्मृति दिन 1973


हिन्दुओं के पवित्र कानून ठहराते है कि झाडुवाले की संतति झाडु मारकर ही जीवन जीयेगी। हिन्दु धर्म में झाडु मारने का काम पसंदका काम नहीं था परन्तु एक दबाव था। गांधीवाद ने क्या किया? झाडु लगाने का काम तो  उदात्त  सेवा है इस तरह की प्रशंसा करके उसे स्थायी बनाने का प्रयत्न किया।

२३ दिसम्बर : गांधीवाद



२२ दिसम्बर : गांधीवाद



जैसे कि वह गुस्सेसे लाल साम्यवादी हो उसी तरह श्री गांधी कभी कभी सामाजिक और आर्थिक विषयों  पर बोलते है। गांधीवाद का अभ्यास करनेवाले व्यक्तिको श्री गांधीके लोकशाहीके पक्षमें  तरफ़ा और पूंजीवाद विरोधी कभी-कभी विरोधाभासी विधानोंसे कभी आश्चर्य नहीं होगा। क्योंकि गांधीवाद किसी भी अर्थमें क्रांतिकारी सिद्धांत नहीं है। यह तो एक बढ़िया रुढिचुस्तता है। जब तक हिन्दका संबंध है तब तक वह "प्राचीनकाल की तरफ जाओ" का सूत्र उसके ध्वज पर दर्शाता प्रत्याघाती सिद्धांत है। गांधीवादका ध्येय हिन्दके मृत्युशैय्या पर पडे भयावह  अतीत  को प्रोत्साहित करनेका, सजीवन करने का है।

२१ दिसम्बर : गांधीवाद




पूना जिल्ला कानून पुस्तकालय समक्ष संसदीय लोकशाही पर बाबासाहब का वक्तव्य 1952


गांधीवाद एक विरोधाभास है। यह विदेशी शासनसे मुक्त यानि देश की प्रवर्तमान राजकीय रचनाको नाश करनेका दावा करता है। दूसरी तरफ यह एक वर्गके दूसरे वर्ग पर आनुवंशिक वर्चस्वको यानि शाश्वत वर्चस्वको बनाये रखने का प्रयत्न करता है। इस विडम्बनाके बारे में क्या स्पष्टता है?

२० दिसम्बर : गांधीवाद





महाडमें मनुस्मृति दहन 1927


वर्णव्यवस्था अगर जिंदा है तो वह भगवदगीता के कारण। मनुष्य के प्रकृतिगत गुण के आधार पर वर्णो की रचना हुई है। इस तरह की दलील करके गीता ने वर्णोव्यवस्था को तात्विक आधार दिया। वर्णव्यवस्था को सहारा देने तथा मजबूत बनाने के लिये भगवतगीता ने सांख्य तत्वचिंतन का उपयोग किया, वर्ना वर्णव्यवस्था बिल्कुल निरर्थक है ऐसा मान लिया जाता। उसका गले उतरे ऐसा आधार देकर वर्णव्यवस्था को नया जीवन देने का पर्याप्त तूफान भगवदगीता ने किया है।

१९ दिसम्बर : गांधीवाद















डॉ. पी. जी. सोलंकी जन्मजयंती 1976

श्री गांधीने ज्ञातिप्रथा की चर्चा को बदलकर वर्णप्रथा का स्वीकार किया। इससे गांधीवाद लोकशाही के विरुद्ध है, इस आरोपमें थोडा सा भी फर्क नहीं पडता। हकीकत में तो वर्ण का ख्याल ही ज्ञाति के ख्यालका जनक है।


१८ दिसम्बर : गांधीवाद




दलित शरणार्थीओ की भयानक परिस्थिति से नेहरु को वाकिफ किया 1947


श्री गांधी जानते है कि उनके ही गुजरात प्रांत में किसी जाति ने लश्करी इकाई  खड़ी नहीं किया है। यह सिर्फ विश्वयुद्धमें ही नहीं, परन्तु पिछले विश्वयुद्ध में जब श्री गांधीने ब्रिटीश शाहीवादके भरती एजेन्ट के रुपमें पूरे  गुजरातका  प्रवास किया था तब भी नहीं हुआ था। हकीकतमें तो सुरक्षाके लिये लोगोंका सेनाके रूप में जमावड़ा ज्ञातिप्रथाके तहत असंभव  है, क्योंकि सेनाके जमावड़ेके लिये ज्ञातिप्रथा के अंतर्निहित व्यावसायिक सिद्धांतकी सामान्य नाबूदी अनिवार्य है।

१७ दिसम्बर : गांधीवाद




दूसरे कई लोगोंने जातिप्रथाका बचाव किया है, परन्तु पहलीबार ही मैंने उसके समर्थन में इस तरह की आघातजनक नहि तो असाधारण दलील   देखी है। रुढिचुस्त भी शायद यही कहेंगे कि "हमें श्री गांधी से बचाओ"। इससे यही मालूम होता  है कि श्री गांधी हिन्दुत्व के कितने गहरे, पक्के रंग से रंगे हुऐ है। रुढिचुस्त हिन्दु से भी वे आगे निकल गये है। यह एक गुफावासी मनुष्य की दलील है, सिर्फ ऐसा कहना ही काफी नहीं है। यह तो सचमुच एक पागल मनुष्य की दलील है।

१६ दिसम्बर : गांधीवाद




रोयल कमिशन समक्ष भारतीय चलन के बारे बाबासाहब की प्रस्तृति 1925
१६ दिसंबर 2000 महार मांग बंधुआ मजदुरों की परिषद में महार वतन पर सरकारी कर का विरोध 1939


हिन्दु समाज टीक रहा है और अन्य समाज मृत:प्राय हो चुके है या फिर अदृश्य हो गये है, यह तनीक भी सराहनीय नहीं है। अगर यह समाज जी रहा है तो यह उसकी ज्ञातिप्रथा के कारण नहीं बल्कि इसलिये कि हिन्दुओंको जीतनेवाले विजेताओंने उनकी सामूहिक हत्या करना उचित नहीं समजा। सिर्फ जीने में कोई गौरव नहीं है महत्वपूर्ण है जीने का स्तर।

१४ दिसम्बर : गांधीवाद




हिन्दु दत्तक ग्रहण और निर्वाह विधेयक पारीत 1956


गांधीवाद का सामाजिक आदर्श या तो ज्ञाति है या फिर वर्ण है। दोनोंमेंसे कौन सा उसका आदर्श है यह कहना मुश्किल है, परन्तु इसमें कोई संशय नहीं है कि गांधीवाद का सामाजिक आदर्श प्रजातन्त्र कतई नहीं है। चाहे कोई जाति या वर्गकी तुलना करे, परन्तु दोनों मूलभूत रुप से प्रजातन्त्रके विरोधी है।

१३ दिसम्बर : गांधीवाद



जय भीम

नागपुर में सभा। 
जय भीम सूत्र का प्रांरभ 1945


ट्रस्टीशीप के विचार द्वारा गांधीवादने एक ऐसा सर्वरोगहर औषध  सूचित  किया, जिसके अनुसार धनिक वर्ग उसकी मिलकत को गरीबोंके कल्याणके लिये ट्रस्ट की तरह देखभाल करेगा। गांधीवाद की वर्गविचारधाराका यह सबसे हास्यास्पद हिस्सा  है।

१२ दिसम्बर : गांधीवाद




गांधीवाद को काल्पनिक वर्गभेदसे संतोष नहीं है। गांधीवाद वर्गोंकी रचना करनेका आग्रह रखता है, समाजकी वर्ग रचनाका आदर करता है, इतना ही नहीं परन्तु आमदनीके भेद को भी पवित्र मानता है और परिणामस्वरुप धनिक और गरीब, उच्च और नीच, मालिक तथा कामगारोंको समाजतंत्रके स्थायी अंग मानता है। सामाजिक परिणाम की द्रष्टि से इससे ज्यादा खतरनाक दूसरा कुछ हो नहीं सकता।

११ दिसम्बर : गांधीवाद
















ओशो जन्मजयंती


जो समाज प्रजातंत्रको आर्दश के रुप में नहीं स्वीकार करता वह समाजमें शायद गांधीवाद स्वीकार्य बनेगा। जो समाज प्रजातंत्रमें नहीं मानता वह यंत्रो और उन पर आधारित सभ्यता के प्रति उदास रह सकता है।

१० दिसम्बर : गांधीवाद




कानून प्रधानपद से इस्तीफा देने के बाद सर्वोच्चय अदालतमें वकीलात शुरु की 1951


गांधीवाद के तहत सामान्य मनुष्य को थोडी सी रकम के लिये सतत परिश्रम करना ही होगा और पशु बनकर रहेना होगा। जो गांधीवाद प्रकृतिकी ओर  वापस मुडने की बात करता है वह विशाल समूह को नग्नता की तरफ, अति गंदगी की तरफ, गरीबी की तरफ और अज्ञानता की तरफ ले जाने की बात करता है।

९ दिसम्बर : गांधीवाद



८ दिसम्बर : गांधीवाद




कालुपुर स्वामिनारायण मंदिर के ट्रस्टियों की मंदिर प्रवेश के मामले में अदालत में हार 1956


अगर यंत्र और आधुनिक संस्कृतिने सभी को लाभ नहीं दिया हो तो उसका हल यंत्रो और आधुनिक संस्कृतिके तिरस्कार में नहीं है परन्तु समाज का तंत्र सुधारने में है जिससे उसके लाभको दूसरे लोग छीन ना लें परन्तु सब को मिले।

७ दिसम्बर : गांधीवाद














 डॉ. आंबेडकर चैत्यभूमिके रुप में प्रसिद्ध चोपाटी पर बौद्ध विधि के अनुसार अंतिम संस्कार 1956

गांधीवादी अर्थतंत्र बिल्कुल निराशाजनक है, मिथ्या है। यंत्र और आधुनिक संस्कृतिने अनेक दूषण जन्म दिया है इस हकीकत को स्वीकार कर सकते है, परन्तु यह दूषण उसके विरुद्ध की दलील नहीं है। क्योंकि, यह दूषण यंत्र या फिर आधुनिक संस्कृति के कारण पैदा  नहीं हुए हैं। समाज की गलत व्यवस्थाने निजी संपत्ति  और निजी लाभ के पीछे लगी स्पर्धा को पवित्र माना है जिससे गलत व्यवस्था के कारण इनका जन्म हुआ है।

६ दिसम्बर : गांधीवाद














बाबासाहब महानिर्वाण 1956


गांधीवादी का निर्माण करनेवाले विचार एकदम प्राथमिक है। उसमें प्रकृतिके प्रति वापस मुडने की, पशु की तरह जिंदगी जीने की बात है। उसकी सरलता ही उसका एकमात्र गुण है। इससे आकर्षित होनेवाले सीधेसादे लोगोंका विशाल समूह हमेशा होने से इस तरह का सरल विचार कभी नहीं मरता और उसे उपदेश देनेवाला कोई महामूर्ख होता ही है।

५ दिसम्बर : गांधीवाद

















'बुद्ध और उनका घम्म' ग्रंथ की प्रस्तावना 1956


आर्थिक दूषणोके गांधीवादी विश्लेषणमें नया कुछ भी नहीं है। सिर्फ यंत्र तथा उसके उपर रची गई सभ्यताको उसका कारण मानते है।

૪ दिसम्बर : गांधीवाद






सती प्रथा नाबूद कानून 1829


श्री गांधी संपत्ति  रखनेवाले वर्ग को दुःखी नहीं करना चाहते । वे तो उनके विरुद्ध   आंदोलनके भी विरोधी है। आर्थिक समानता के बारेमें उनके अंदर कोई वृत्ति नहीं है। संपत्ति रखनेवाले वर्गका उल्लेख करते हुऐ गांधीजी ने हाल में ही कहा कि सोनेका अण्डा देनेवाली मुर्गीको वो मारना नहीं चाहते।

३दिसम्बर : गांधीवाद



मालिकों  और कामगारोंके बीच, धनिक और गरीब के बीच, जमीनदारों और काश्तकारों के बीच,  मालिक और नौकर के बीच आर्थिक संघर्ष का हल अत्यंत सरल है। मालिक स्वंयकी संपत्ति से अपने आपको वंचित ना रखें । उन्हें  तो इतना ही करना चाहिये कि गरीबोंके ट्रस्टीके रुप में अपने आप को घोषित करें । अलबत्ता यह ट्रस्ट स्वैच्छिक होगा और आध्यात्मिक कर्तव्य निभाता होगा।

२ दिसम्बर : गांधीवाद










भोपाल में युनियन कार्बाईड की जहरीली गेस से 33,000 लोगों की मृत्यु 1984

१ दिसम्बर : गांधीवाद



पंढरपुर में सोलापुर जिल्ला दलित परिषद 1937
मुंबई में आठवीं राष्ट्रीय सामाजिक परिषद में सयाजीराव का उदघाटकीय भाषण 1904
31 सोमवार
गुजरात में आरक्षित बैठकों को नाबूद करने के लिये राइटिस्ट अंतिमवादी आंदोलनकारीओं का सरकार को आवेदन पत्र, हिन्दु फासीवाद की प्रयोगशाला का भूमिपूजन 1981

गांधीवाद ने जो कुछ भी किया है, वह हिन्दु धर्म और उसके सिद्धांतो को तात्विक रुप में सही ठगराने के लिए किया है। हिन्दु धर्म को ढंक नहीं सकते, इस अर्थ में कि यह सिर्फ नियमों के एक ढांचे  जैसा है, जिसके चेहरे पर एक घातकी और जाहिल व्यवस्थाकी छाप उभरी है। गांधीवाद उसे एक ऐसा तत्वचिंतन देता है, जो उसकी सतह को नरम बनाता है और उसे सौजन्य और आदर देता है और उसे इस बदलता है। इतना ही नहीं परन्तु यह आकर्षक लगे इस तरह इसे सजाता भी है

३० नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन


अहमदाबाद महानगर पालिकाने बाबासाहबका सार्वजनिक सम्मान किया 1945


सगरके साठ हजार पुत्र थे और सौ कौरव थे, दक्ष प्रजापति की सत्ताइस पुत्रियां थी और दुसरे कितने प्रसंग थे। जब सोचते है, तब कोई मान सकता है कि उस समय ब्रह्मचर्य का कोई पालन करता था?

२९ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



गुरुजी गोविंद टी. परमार के अध्यक्षपद में साबरमती तट पर फेडरेशन परिषद 1945


ऐसा कहा जाता है कि हमारे लोग आध्यात्मवादी है, जब कि पश्चिमवासी भौतिकवादी है। अब तो इस रट को सुन-सुन कर कान पक गये है। हमारे लोग किस तरह से आध्यात्मवादी है? क्या हमारे लोगोंने दुनिया का त्याग किया है और साधु बन गये है? " ये सब माया है", "सांसारिक  जीवनके प्रति आसक्ति छोड देनी चाहिये" ऐसा बारबार कहने से लोग क्या आध्यात्मवादी हो जायेंगे?

२८ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन














महात्मा ज्योतिराव फूले स्मृति दिन 1890


हम ऐसा मान लेते है कि आत्मसंयम से कुछ व्यक्ति जन्म-नियंत्रण ला सकते है तो भी, हम इस तरहका अंदाजा नहीं निकाल सकते कि दूसरे लोग उनके नक्शे-कदम पर चल सकेंगे।

२७ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



डॉ. आंबेडकरके अध्यक्ष पदमें सातवीं हिन्दी कामगार परिषद 1945
पाकिस्तानके दलितोंको भारतमें आने देने का अनुरोध किया 1947


देश और मेरे बीच,  देश अग्रिमस्थान पर रहेगा, देश और दलितोंके बीच दलित ही अग्रिमस्थान पर रहेंगे , देश को अग्रिमस्थान नहीं मिलेगा।

२६ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन












संविधान सभाने संविधान को मंजूरी दी। डॉ. आंबेडकरके प्रदानको अध्यक्ष डॉ.राजेन्द्रप्रसादने सराहा। 1949


जन्म-नियंत्रण के लिये आत्मसंयम बिल्कुल निरर्थक साबित हुआ है यह  कितने ही  देश और युगोंका अनुभव है ।

२५ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन













संविधान सभाको संबोधन 1948

शिवाजी पार्कमें दो लाख लोगोंकी सभाको संबोधन 1951

२४ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन


'बहिष्कृत भारत' पाक्षिकका नाम बदलकर 'जनता' रखा गया 1930


जब- जब देश और अस्पृश्यके हित के बीच संघर्ष होगा तब तब, मेरे लिये, अस्पृश्योंका स्थान देश के हितकी अपेक्षा अग्रिम रहेगा। मैं जुलमगार बहुमतका साथ तो कभी भी नहीं देनेवाला हूँ, सिर्फ इस कारणसे यह देशकी बात करते रहते है। इस दलका साथ मैं कभी नहीं देनेवाला, क्योंकि  यह सिर्फ देशकी बातें ही किया करते है।

२३ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन


बौद्ध तीर्थधामों की यात्रा 1956


मैं ऐसा कहता हूँ कि "मुझे मेरा सेइफगार्ड्स दो, जो मेरे लिये जरुरी हो" और आपका प्रजातन्त्र आप  अपने पास रखो ।

२२ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



फेडरेशन चुनाव प्रचारका प्रारंभ, परेल 1951


मैं जानता हूँ कि देशमें अल्पसंख्यक  व्यक्ति जब अपनी कौमके अधिकारोंके लिये लड़ने को तैयार होता है तब पूरा समूह उसके सामने खडा हो जाता है और उसे साम्प्रदायिकका लेबल दे देता है, भारतविरोधी लेबल दे देता है, और उसे इस देशके विनाशके लिये कार्यरत  नौकरशाही के किसी अफ्सरकी कठपुतलीका लेबल दे देता है।

२१ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



इस देशमें मैं जो स्थिति देख रहा हूँ। समग्र भारत में रचे गये अलग-अलग मंत्रीमंडलो की राजकीय रचनाको मैं देखता हूँ। इससे मुझे एक बात ध्यान में आई है कि अस्पृश्य सामाजिक रूप से शुद्र है और कांग्रेस सरकार बनेगी तो स्थिति की अनिवार्यता ऐसी है कि आखिर अस्पृश्य राजकीय रुप से शुद्र बन जायेगे  और ये मैं सहन नहीं करुंगा। इस स्थिति को जड़से उखाड फैंकने के लिये मैं खून के आखिरी कतरे तक लडूंगा।.

२० नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन





काठमंडु में विश्व बौद्ध संमेलन, "बुद्ध और कार्ल मार्कस" विषय पसिद्ध  प्रवचन 1956

महोदय, लोगो को विधानमंडल में जुडने से रोकने के लिये 1930 में कांग्रेसीओने कौनसे नारे पुकारे थे? एक नारा था, जो मुझे याद है, "परिषदमें जाना हराम है," परन्तु इतना ही काफी नहीं था। "परिषद में कौन जायेगा? ढेड जायेगा, चमार जायेगा," कांग्रेसियोंने ऐसे नारे भी पुकारे थे।


१९ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन





इन्दिरा गांधी जयंती 1917


मेरा कोई भी ट्रस्टी नहीं है, मैं स्वंय अपना ट्रस्टी हूँ। वह भले ही अपने संविधान का निर्माण करे, परन्तु हम अपना अधिकार मांगेंगे । वे भले कोई भी विधेयक करें , परन्तु यह हमारे लिये सेइफगार्ड ही बस है या नहीं, यह तो दलित प्रतिनिधित्व ही तय  करेगा।

१८ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



१७ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन











तीसरी गोलमेजी परिषद का प्रारंभ 1932


कुछ लोग ऐसा कहते हैं  कि हम अव्वल भारतीय हैं  और हिन्दु बाद में अथवा मुस्लिम बाद में है तब मुझे यह अच्छा नहीं लगता। मुझे इससे तनीक भी संतोष नहीं है। मैं साफ साफ कहता हूँ कि इससे मुझे थोडा भी संतोष नहीं है.... मैं सभी लोगोंको प्रथम भी भारतीय और अंत में भी भारतीय देखना चाहता हूँ। और और  कुछ नहीं, सिर्फ  भारतीय ही ।

१६ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व करनेवाले हम लोगोंको मराठी ,  गुजराती या कन्नड़  होने में किसी भी प्रकार का गर्व महसूस नहीं होता।

१५ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन



संविधानसभा में बाबासाहब का ऐतिहासिक वक्तव्य 1946


डॉ. जहोन्सन ने कहा है, "देशभक्ति बदमाश लोगो का आखिरी आश्रयस्थान है।" वह बहुत अच्छी तरह ऐसा भी कह सकते थे कि "राजनीति  भी लुच्चे लोगो का आखिरी आश्रयस्थान है," और इस कारणसे मैं यह नहीं मानता कि भारत में राजनीति  बदमाश लोगों का आश्रयस्थान बने ऐसा होना चाहिये और यह कहने के लिये मैं खडा हुआ हूँ।

१४ नवम्बर : प्रांतिक विधान परिषदमें प्रवचन












जवाहरलाल नेहरु जयंती 1889
छुआछुत निवारक संघको दलितो के नागरिक अधिकारोके लिये आंदोलन करने का अनुरोध 1932


चूँकि , गैरकानूनी मंडली जिसकी हम उपेक्षा कर सकते है ऐसा कोई गुनाह तो नहीं हो सकती फिर भी यह निश्चित तौर पर ऐसा कोई गंभीर गुनाह  नहीं है कि जिसके लिये  कड़ी सजा हो ।