‘बुद्ध और उनका धम्म' पुस्तक की 500 प्रतियाँ खरीदनेके लिये
सरकारसे बाबासाहबका अनुरोध। उत्तर देते हुए पत्रमें नेहरुने पुस्तक खरीदनेसे इन्कार. 1956
हर
तरफसे कंगाल ऐसे कामगारोंके पास बचाने के लिये बहुत थोडा होता है, फिर भी
राष्ट्रवाद के तथाकथित उदेश्योंके लिये बडे पैमाने पर अपने सर्वस्वकी कुर्बानी
देते है। उन्होंने कभी इस बातको पूछनेकी कोशिश नहीं की कि जिस राष्ट्रवादके लिये
उन्हे आहूति देनी है, उस राष्ट्रवादकी जब स्थापना होगी तब उन्हे सामाजिक और आर्थिक
न्याय मिलेगा भी या नहीं।
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